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देहात में अच्छे गहने-कपड़े पहिनता ही कौन है? फिर भी सब के बीच में विन्दो ही विन्दो दीख पड़ती थी। विन्दो सबसे अधिक सुन्दरी तो थी ही; साथ ही पति की तरह वह सबसे अच्छे कपड़े भी पहिना करती थी।

मना करने पर भी वह जिठानियों के साथ काम करती और सास को नियम से रोज रामायण सुना देती। रात को अलाव के पास बैठती, जहाँ गांव की अनेक युवतियां, वृद्धाएं, युवक और प्रौढ़ सभी इकट्ठे होते; फिर बहुत रात तक कभी कहानी होती और कभी पहेलियां बुझाई जाती। वहां दिन भर के परिश्रम के बाद सब लोग कुछ घंटे निश्चिन्त होकर बैठते; उस समय कहानी और पहेली के अतिरिक्त किसी को कोई भी चिन्ता न रहती थी।

सवेरे नदी का नहाना भी कम आनन्द देने वाला न रहता। बूढ़ी, युवती, बहू, बेटी सब इकट्ठी होकर नहाने जाती रास्ते में हँसी-मखोल और तरह तरह की बातें होती; विन्दो भी उनके साथ जाती; नदी में नहाना उसे विशेष प्रिय या और कभी कभी जब वह विरहा गाते हुए दूर से आती हुई अपने पति की आवाज़ सुनती या जब वह देखती कि उसका पति अपनी मस्त आवाज़ में --

"खुदा गवाह है हम तुमको प्यार करते हैं" गा रहा है उसे ऐसा प्रतीत होता कि जवाहर उसी को लक्ष्य करके यह कह रहा है। तात्पर्य यह कि बिन्दो पूर्ण सुखी थी; अब उसको कोई और इच्चा न थी।

[३]

एक बार विन्दो की मां बीमार पड़ी। मां की सेवा करने के लिये विन्दो को लगातार ४५ महीने नैहर में रहना पड़ा।