पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१२४

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ऊम्मिला (१३४) अरी तुझे तो अभी देखना है यह सब स्वर्गीय दृश्य, री, तेरे उर मे अकित होगे लक्ष्मणोम्मिला पदस्पृश्य, री , उनकी झाकी को तू दरसा देना हिन्दी मॉ के द्वारे, तब तू होगी धन्य और तब तव गृह होगे वारे-न्यारे । 'सास बहू का मृदु-दुलार कुछ कुछ तू देख चुकी है, पाल तू ने सुन ली ननंद शान्ता की चुटकियाँ मधुर रस वाली , रिपुसूदन को कला-पाठ भी पढते तू ने देख लिया है, 'और भक्ति-सर मे उतराते तूने उनको पेख लिया है। अन्त पुर को छोड चले री, अब आ चले हर्म्य के बाहर, चले जहा, श्री राम-लखन की फैली अभिनव कीर्ति उजागर , टल जाने दे बरस चार छ यो ही इधर उधर विचरण मे, छुप जाने दे तनिक म्मिला-लक्ष्मण को सुख-पटावरण मे । (१३७) स्नेह-रज्जु यह बटी जा रही है, इसको तू बट जाने दे, प्रथम-मिलन की अरुण झिझक को,अरी,तनिक-सी हट जाने दे, फिर तू आकर इन दोनो की मधुर ललित नित लीला लखना, जितने चयन कर सके उतने तू प्रसून अचल मे रखना । (१३८) लेखनी,थक गई हो,तनिक देर विश्राम कर लो न विश्रान्ति-गृह मे, प्यार वर्णन करो लखन का,किन्तु सुस्नान करलो न निर्धान्ति-दह में? नवल शृङ्गार रस अमित उमडे, सखी, किन्तु वेला उदधि की न टूटे, मुक्त रसना तुम्हारी लुटावे सुखद प्यार के पुष्प ससार लूटे ।