पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४

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ऊम्मिला २ तुम्हारे पीछे-पीछे चला--- आ रहा हूँ मै भी, चचले, पुरातन त्रेता युग का मार्ग हुआ है लोप, निशीथाचले कही इस धनी कुहू को देख न रहना बैठ, न जाना हार, ढूढने निकली हो तुम आज मूक भावो का पारावार, ढूढ लामो उसको तुम, अरी- लेखनी, हो जाओ कृत कृत्य शुष्क कागद के कोनो बीच, हो उठे नव करुणा का नृत्य । ३ , पुरातन बाल्मीकि के गूढ भाव-भृ गो के मुखरित झुड, अछूता छोड गये जो पुष्प, उसी के रस से पूरित कुड, विकल हो, ढूंढ निकालो, और करो पीप चरित का पान, बनो रस-सिक्त सुनामो अखिल विश्व को निज रस-सिक्ता तान , न हो आलस्य, न हो उद्रेक, न लामो अपने मन म भ्रान्ति, ऊम्मिला की आहो को सुना करुण रस मे कर दो कुछ क्रान्ति । २