पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१५

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प्रथम सर्ग पूज्य तुलसी की माला बडे- बडे मनको से गुम्फ्ति हुई, राम-सीता के अविचल भक्ति- भाव से ही है चुम्बित हुई लेखनी, यह छोटा मनका, न- कही दिखलाई पडता वहाँ, हृदय की आकुलता कह रही आह | यह छोटा मनका कहाँ न लामो बेर, लगायो टेर, सुनेगी वह मिथिला नन्दिनी, सुमित्रा माँ की वह प्रिय बहू, लखन के जीवन की चाँदनी । ? ५ कई शत वर्ष गए हैं बीत सहस्रो की गिनती हो रही , सुभग साकेत हुआ है खेत, हाय मिथिला शिथिला सो रही, और वे भव्य भूरि प्रासाद याद में भी कुछ-कुछ मिट गये , किन्तु, लेखनी, आज भी वही गान हम को तो है नित नये , इसी से तुम से मै बहु बार, कह रहा हूँ--तुम डूबो अाज अगम सम्पूर्ण भूत के गर्भ-- सिन्धु मे सज जीवन के साज f ३