पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८

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ऊम्मिला ५ जनक नन्दिनी, देवि मिले, तू करुणा की मूर्ति , तव चरणो का ध्यान हृदय को देता है सुस्फूत्ति , तेरे आशीर्वचन करे मम इच्छा की सम्पूति , भ्रमित चित्त मेरा होवे तव करुण शान्ति की भूति । ६ तरे अटल भरोसे पे यह मैने अोढा भार यही वन्दना तव मृदु चरणो मे मेरी इस बार- ये भाव प्रसून , जिन से मै गूथूगा यह हार, सूख न जावे, यह माला हो विघ्न रहित तैयार । 7