पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९०

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कम्मिला मिला, मिला, खिली, हास-विलासो की प्रतिध्वनि मे, आज रुदन-आभास मधु-सॅजोग-घटिका मे आकर यह वियोग-विष-त्रास दरस-माधुरी मे अदरस की, कॅकरीली वेदना मिली, लक्ष्मण-हृदय-स्थल मे सहसा तवल कर्म-प्रेरणा सुख-बलिदान, जीवनाहुति के, आत्मार्पण के दॉव लगे, राज-भोग , ऐश्वर्य छुट रहे, मर-मिटने के भाव जगे । १४ करुणाम्बुधि अपनी मर्यादा उल्लधित करने विकट-व्यथा का धन-समूह यह, दिड मण्डल भरने ज्ञान-विराग-भाव को पीडा का समूह हरने आया, यि की होली में वियोग यह चिनगारी धरने आज ऊम्मिला-लखन परखने को यह घटिका आई है, अपने सँग अति कठिन कसौटी का पत्थर वह लाई है । पाया, पाया, प्राया, ? १७६