पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२२९

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तृतीय सर्ग पग-रेखा, मानवता उत्क्रान्त हो उठी विकसित निपट प्रफुल्लित-सी, थकित अलस ऑखे खुल आई ज्यो कलिकाएँ मुकुलित-सी, विस्फारित,भय व्यथित, सम्भ्रमित चकित नयन ने जग देखा,- बनथल पर अकित थी, प्रमदे, चतुष्पदो की बीहड विपिन, निबिड तम पूरित, जन-गण का आवास हुना, गिरि-गह वर मे, द्रुम शाखा पर, उनका आदि-निवास हुआ । ६२ शब्द-दीनता अोठो पर थी, कर्णो मे अभिव्यक्ति व्यथा , सजनि, अबोली अलिखित ही रह- गई सृष्टि की आदि कथा, ऋमिक प्रगति से जन-समूह मे भाषा सचार हुआ, कॅपते-कॅपते तुतलाते से, का शब्दो का विस्तार हुआ, काल बने, सज्ञा बन आई, क्रिया बनी, अभिधान बने, नाम विशेषण, क्रिया-विशेषण के ये सब सन्धान बने ।