पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२३८

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ऊस्मिला दुस्सह व्यथा, असह्य वेदना, अमित कष्ट सगी अपने, सीता-राम-लखन जाते वन मे जीवन-तप तपने, हाय, न खीचो तडपा देने वाली आहे, रह-रह के, तनिक बँधागो मुझको ढाढस तुम दृढता से यो कह के- 'जीवन एक पहेली बन कर आया सावधान, यह है समरस्थल, प्रिय, मत हिचको, तुम जूझो । इसको बूझो, बस, इतना ही कहो, सलौनी, फिर मैं सब कुछ कर लूंगा, फिर तो वन का घोर तिमिर-दुख मैं क्षण भर मे हर लूंगा, मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सुभट प्रहरी, बस मुझ को दे दो तुम अपनी स्मिति-रेखा यह अश्रु-भरी, अश्रु-भरी आँखो मे भर के, कुछ सपना - सा, मुझको, प्रिये, आज तुम, हाँ, कुछ, प्रेरित कर दो, उकसा दो । मुसका दो, २२४