पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६०

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ऊम्मिला विकला ? १५३ आशिक कर्म रूढियाँ क्यो कर- रही भावना तव वस अच्युत सद्धर्म-परिधि ही है अलधनीया विमला, भक्तराज प्रह्लाद कर चुके पितुराज्ञा उल्लधित, फिर भी उनकी पुण्य-स्मृति है आज सकल जन-गण-वदित, लधनीय है प्राज्ञा गुरुजन- की अधर्म्य, अविचारमयी, मान्य गुरोराजा क्यो होगी, जो विषमयी, विकार-मयी ? तुम विचार-क्रान्ति के उपासक, तुम नवीनता उन्नायक, तुम प्राचीन दम्भ के भेदक, तुम जडता के गति-दायक, तुम कोदण्ड, प्रचण्ड-भाव के, नवोत्रान्ति के तुम सायक, तुम तूणीर चमत्कारो के, तुम प्रत्यचा निश्चायक, शब्द-बेधन-क्षम तुम हो, तुम- सशय वाक्य नष्ट - कर्ता, तुम हो निपट अचूक खिलाडी "भवति-न भवति"-भाव हा - .