पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६८

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अम्मिला का सार तत्व मेरे जीवन अब मे भटकेगा, वह वन-पशुओ से उलझेगा, वह शूलो मे अटकेगा, यहाँ ऊम्मिला राज करेगी रासादो में, उपवन मे, हृदय, अरे ओ निष्ठुर, निर्मम फटता क्यो न एक क्षण मे ? प्रॉखो, प्रो वेपीर ऊम्मिला- की नि सार नृत्य शीला- पथराई तुम नही अभी तक ? देख रही हो यह लीला ? १७० मेघ धिरेगे, शीत आयगी, ऋतुएँ पाएँ - जाएंगी, सरयू की इठलाती लहरे बलखाती लहराएंगी, कोयल कूकेगी, कुहकेगा तृषित पपीहा उपवन मे, यहाँ ऊम्मिला होगी, होगे- सीता-राम-लखन हाय, हुई निरुपाय ऊम्मिला, कोई तनिक सहारा दो, मुझ अनाथिनी को उसका वह अपना बॉका प्यारा दो 1 वन मे । २५४