पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२७३

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तृतीय सर्ग ? क्या बीतेगी करुणा भरिता श्वश्रू माता के मन क्या बीतेगी उन के करुणा- जर्जर तापस-जीवन पे ? बिना राम के कोशल-जनपद का क्या होगा, पता नही, बिना राम के नृपति न दे दे प्राण कही, यह सब अनाचार, सन्निष्ठा के धोखे हो रहा यहाँ, इसको ही तुम कहते हो निज जीवन का सदेश महा ? आपने प्राकुल में कुछ भी समझी न, हो न हो, मै हूँ कुण्ठित बुद्धिमयी, किवा मेरी बुद्धि हुई हो शोक - विकार - अशुद्ध - मयी, पर इसका क्या करूँ ? हृदय मे- लप-लप करती ज्वालाएँ- रोम-रोम झुलसाए देती है ये अति विकरालाएँ, धैर्य अहो प्रिय, नारी का यह जीवन है धृति-मति-प्रतिमा, पर इस का क्या हो? मै तो हूँ- आज बनी अति-गति-प्रतिमा ।" २५६