पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२७५

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तृतीय सर्ग कल्याण-मयी, सभी वह तव नित-विद्रोह-प्रेरणा अतिशय परिपाटी उच्छेद भावना है जग-जन की प्राणमयी, तत्सम्बन्धी तुम्हारी उग्र उक्तियाँ है अमला, दोप रहित, सद्भावोत्प्राणित, सभी युक्तियाँ है सबला, 'किन्तु एक है वात और भी- पर तनिक विचार करो, नैक सोच लो, माँ कैकयी-- से यो तुम मत रार करो । १८४ 'कैकेयी माँ दूर देश की है, वे युद्ध-सन्धि मे प्रकट कर चुकी- है वे निज निपुणा लीला, उत्तर-पश्चिम से प्राची तक- विस्तृत है उनका अनुभव, इसीलिए उनके हिय मे है एक भाव अभिनव, है गौरव-काक्षिणी बडी मॉ- यह है प्रत्यक्ष, पर, इस बार, हुआ है उनके गौरव का कुछ ऊँचा लक्ष्य । है अनुभव शीला, in cunas पाया कैकेयी,