पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३०

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ऊम्मिला डाली-डाली मधुर स्वर से गूंजती है निराली, मूच्छीपूर्णाकुल झपकती अॉख मे है सुलाली , सद्य स्नाता सदृश, टहनी बिन्दुनो से भरी है, मानो धीरा अचल वसुधा अध्ये ले के खडी है । तुष्टा हृष्टा जब चहकती पक्षियो की कतारे- तो एकाकी झनक उठती कल्पना की सितारे , सारे वासी इस नगर के, नादिता गान धारा- की तानो मे, मुद्रित करते पुण्य सुस्नान प्यारा । १७ क्यारी-क्यारी मधुरस भरी यो सुहाती सलौनी, ज्यो होली के नवल दिन मे रजिता, रग लौनी,- भ्रान्ता कान्ता, मधुरस भरी, हो सुहाती सुरम्या, भू की भव्या मरस सुषमा डोलती हो अगम्या । कुजो-कुजो किरण कर से, रीझ के अशुमाली- 'पा जाते है सुमृदुल जुही की वही प्रोप्ठ-जाली फूली-फूली विपिन भर मे डोलती है चमेली मानो मुग्धा, श्वसुर गृह मे, पा गई प्रेम-बेली ! तान-भकार न्यारीन्यारी गुनगुन-मयी ऐठे से ये अलिग्रण. सभी गान-भकार पूरे- उन्मत्तो के सदृश फिरते बाग मे लुब्ध यो है, मानो योगी विरत रस मे लीन सम्मुग्ध ज्यो है ।