पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३२१

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तृतीय सर्ग २७४ धूल भरे, खिसियान भरे, ये- पग-रगडते राम-लक्ष्मण,- आपस मे नित उलझ-सुलझते लड झगडते राम-लक्ष्मण,- 'राजा बेटा राम' तुम्हारा 'बडा हठी' लक्ष्मण, आज तुम्हारे द्वारे आया दिखलाता कौतुक-लक्षण, अलख जगाते जोगीडो की सब मज-धज साजे आए, भीख मांगते, दौडे अपनी- माँ के दरवाजे आए। पौ तव २७५ दोनो, तुम अजस्र दानिनी, जननि, है- बड़े भिखारी हम दोनो, नित्य-नित्य भिक्षा लेते है, पारी-पारी अबकी लेने भीख तुम्हारी दोनो सँग-सँग आए, हे माँ देवि, तुम्हारे भिक्षुक देखो तो क्या रॅग लाए, लज्जित हूँ, अति लज्जित हूँ, माँ, क्या कह दूं मै, क्या न कहूँ, श्री चरणो में विनय करूं या, मों केवल म मौन रहूँ 7 हम ३०७