पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४८

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ऊम्मिला ३२८ आकर तुम्हे सुनाऊँगी, माँ, सब विचित्र वर्णन वन के देवर के सब कार्य, और सब कर्म-धर्म जीवन-धन के, हम तीनो की बाट जोहती- रहना, तुम मत थकना, माँ, तुम मेरी ऊम्मिला बहिन को खूब सम्हाले रखना, मॉ, यह लक्ष्मण की कितनी प्यारी- है, इसको तुम जानो हो, और लवन से अधिक ऊम्मिला- को हे माँ, तुम मानो हो । ३२६ अभी, एक दिन, मुझ से हँस कर, लालन लक्ष्मण यो बोले भाभी, खूब ठगे तुम सब ने मानायो के मन भोले, ऐन्द्रजालिकाएँ मिमिला की होती बडी कला वाली किन्तु देखने म तुम मब यो लगती हो भोली-भाली राम, भरत, लक्ष्मण, रिपुमूदन अब न कही के यहाँ रहे, अव तुम सब बधनो के आगे हम बंटो की कोन कहे ? 1 -३३४