पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६

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ऊम्मिला साम्राज्यान्तर्गत विषय को देखते है अमात्य, औदीच्यो की सकल सुविधा, ग्राम्य ये दक्षिणात्य-- पौर्वात्यो के नगर वन औ' पश्चिमी वीथियाँ ये, सारी बाते, द्रुत सुलझती गूढ-सी गुत्थियाँ ये । राज्य-श्री को निरत चित से गोपते है सुमन्त्र, निस्वार्थी है नित यह चलाते अहो राजतन्त्र- मानो विश्वम्भर सजग हो पोषते है सुविश्व- श्री लक्ष्मी से सतत नित सतोषते है सुविश्व । 3 त्रेता की है परम महती कीति-गाथा अपार जावेगी तू कब तक, कहाँ, कल्पने, हे असार ? भूली-भली अब तक फिरी है कहाँ से कहाँ तू क्यो आई थी इस नगर मे ? डोलती क्यो यहाँ तू? ? ४८ तूने, मुग्धे, अब तक न खोजा है निज स्वामिनी को, ए री बोरी, हृदय-नभ मे क्यो भरा यामिनी को ? मारी-मारी न फिर अब तू , चचले, आ, चले री, राज-प्रासाद मधुमय के, अञ्चले श्रा, चले री । ४६ ऊँचे-ऊँचे शिखरवर ये शोभते है निराले , या सोने के शुभ कलश हे चाँदनी में सुढाले , सिह-द्वारे सज कर खडे अस्त्रधारी सुवीर- क्षत्राणी के सजग सुत ये युद्ध के श्रवीर । २२