पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६४

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अम्मिला - अचरो मे व्यथा भरी है, चिर आकर्षण मिस, विभु ने, सचरो में करुणा फूंकी, इस संघर्षण मिस, विभु ने, जड मे भर दी है करुणा, अणु को गति-बन्धन दे कर, चेतन मे व्यथा उँडेली, । जीवन-निस्पन्दन देकर, अब अखिल विश्व में प्रति छिन, यह हा-हा-कार मचा है लीलामय ने यह नाटक क्या ही अदभुत विरचा है 1 धन उमडे,-हिय भी उमडे, घन बरसे,--आखे बरसे, लू चले हृदय में तब, जब- जड जग निदाघ मे तरसे, क्या ही विभु ने भेजा है- यह अपरस्पर अवलम्बन, जड़-चेतन का प्रकटा आलिगन, मुद परिरम्भण पर, प्यास नहीं बुझती है, लग रही आस की फाँसी, आ जाओ, अलख खिलाडी, तुम डाले गलबहिया सी 1