पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८६

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जम्मिला से, मे, ५७ ऑमू उमडे अन्तर चिर हिय-मन्थन के फल ये, सम्भूत हृत्तल वेदना-प्रसाद-विकल चिर विरह-वल्लरी पर ये अभिषिक्त अोस-जल-कण से, उठे आह-आलोडित, सुकुमार तरल कम्पन से, नित मगन लगन-लतिका के ये कीणित, कुसुम कलित से, अति अतल विरह-वारिधि के ये मोती अमल, ललित से । वेदना-बाला, पड जीवन में चलते-चलते मिल अति प्रखर विरह-शूलो में गया हिये मे छाला, पीतम का मान मनाने हिय अकुलाया मतवाला, अॉखो से गूंथी यह मोहन-भाला, पिय के अदृष्ट चरणो मे लिपटी ये तरला लडिया अथवा पड गई अलख-सी स्नेह-श्रृ खला-कडियाँ । बड़े जतन ३७२