पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४२८

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ऊम्मिला ६१ तुम पन-घट-पति, कूप-पति, तुम घट-पति, हे प्रान, पनिहारिनि-पति, नीर-पति, प्रेम-रज्जु-गुण वान । ६२ "भब भब" करि घट-रिक्कता भागै, जागै भाग, नीर-पीर छूट, मिटै, रीतेपन को दाग सोरठा मोहि आपुनी जानि, करहु कृपा एती, सजन, करि सँजोग जल दान, भरहु रिक्त अस्तित्व-घट । सार हीन अति है गयो, तुम बिन मम ससार, छिन-छिन भए पहार सम, सुनहु जीवनाधार । लगन बावरी हृदय की, अभिसारिका प्रवीन, बौरानी-सी फिर रही, इत-उत, तव रस लीन । योग-छम को मोह तजि, दीप नेम को साजि, लगन अँधेरी डगर मे, चली गेह तै भाजि । ४१४