पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४७५

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पबम मग ३७३ सीचि-सीचि यि-वाटिका कर्यो , प्रयास अथोर, तऊ तिहारी ना भई, तनिक कृपा की कोर । ३७४ लै निग्रह की कतरनी, मनमाली नित बैठि, राग द्रुमन्हि छाटत रहत, हृदय-वाटिका पैठि । ३७५ अमल सुमन फूलत हिये, नहीं वासना लखन-चरण-रति को चढ्यौ उन पै चोखो रग । ३७६ उद्यान करत रहत रोम-रोम लौ मे भाव-भृग गुजार, व उठल, गुन-गुन-धुनि-सचार । ३७७ पुहुप-पंखुरिया है रही, लोचन-सीकर-सिक्त, सद्य नेह-मधु सो भर्यो, कुसुमन को हिय रिक्त । ३७८ एती नव-रस सो भरी यह सनेह निधि पीन, युग अनादि तै ह रही तव चरणार्पण-लीन । ४६१