पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५००

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ऊम्मिला ५२४ मानवता किमि पावती, ये अमोल उपहार, यदि न ऊम्मिला सदन मै होतो हाहाकार ? ५२५ कहा भयो जो बन गई सीता सती पवित्र ? जन-मन अकित होयगो वह अादर्श चरित्र । ५२६ मानवता जब मत्त्व दे, भूलेगी सत् रूप, तब सीता को स्मरण शुभ दै है शाति अनूप । ५२७ कहा भयौ जो ऊम्मिला तडपति है दिन-रैन ? याई मिस जग ह्वै रह्यो, पुण्य ज्ञान गुण ऐन । ५२८ यज्ञ, आत्म बलिदानमय, भई जगत की सृष्टि, मम साजन पोषण करत, करि दृग-जल की वृष्टि । ५२६ आखे रोवति बावरी, हिय मूरख हहरात, पै विवेक गम्भीर ह्दै, कहत तितिक्षा बात। ४८६