पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५०२

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ऊम्मिला प्रवीन, यि क हा-हाकार को, नेह न कहत नेहा गहर गभीर है, थिर है, नित्य अदीन । ५३७ नेह न हा-हा खातु है, भीख न मागत नेह, नित्य मगन, नित तुष्ट जे, नेह-नीति - धर तेह । मॅगता मागत दीन हवै, कृपा कोर की भीख, बिना मोल विकि जाइबो, यही नेह की लीक । बिन मोचे, बिन कछु कहे, बिना भाव अनजान, न्योछावर हवै जात है, दृग, मन, हिय, जिय, प्रान । ५४० कहा मागिबो रोड के, पिय को नेह प्रसाद 2 हौ न याचिका, जो करौ ठाकुर सो फरियाद । जोगी जोगिन प्रेम के, प्रातुर याचक नाहि, वे है प्रेमी, बावरे, ठाकुर जिन हिय माहि । ४५८