पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पचम सर्ग ६५० to lo आए प्रासू बने, वे वन आए चोट, वे आए है विरह बनि, हवै नैनन की प्रोट । हिय-कम्पन-मिस करि रहे, पिय, उत्पल मालॉच, रोम-रोम में रमि रहे, वे वनि चिर रोमाच । अधरन मे लाली बने, रजित भए सुजान, नयनन्हेिं बने कनीनिका, भए कृष्ण रंग खान । ६५३ सघन केस मिस उडि सजन, या मुख पै मॅडरात, लट मिस लटकि कपोल पै, चुम्बन करत सिहात । पाकुलता बनि के हिये, छाय रहत पिय आय, कबहूँ कै रस-लीनता, प्रावत लाज बिहाय । आवत है कबहूँ सजन, बनि के हिय की खीझ, कबहूँ मन प्रसाद बनि, छाय रहत पिय रीझ ।