पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५१

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पाठ मर्ग नरपति, राम की ३३ मेर यज्ञ कर्म की यह पूर्णाहुति आज हुई, वह जीवन-साधना ग्राज यहाँ कुन-काज हुई, ग्राज हुई है पूर्ण कामना मम निप्काम तपस्या की, भत्व-दीपिका मिली राम को, जग की सकल ममस्या की, अाज पूर्णता मिली परन्तप- लक्ष्मण के नैष्ठिक तप की, आज हुई है पूरी माला जनक - नन्दिनी के ! जप की ४० बाते कहने को अनेक है इस मगलमय अवसर यदि हो कुछ विस्तार अधिक तो क्षमा करे मुझको, नरवर, जीवन - इति - कर्तव्यता हुई- हो पूरी जिस शुभ क्षण मे- उस क्षण उठ-उठ पाते ही है भाव अनेको जन मन मे , आज राम की यही दशा है, क्या कह दूँ? क्या-क्या न कहूँ कहूँ या कि कुछ भी न कहूँ? मन ? चुप साध रहूँ ? मौन गहूँ ?