पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला यह,- अनादि का, आप, नृपति, अापकी यह शुभ निष्ठा, धर्म -भाव-तत्परता यह अफलाकाक्षिणी कर्म-रति, शुद्ध सत्य-निर्भरता मानवता के लिए बनेगी, पथ - दर्शिका प्रदीप - शिखा, प्रतिबिम्बित है तब नयनो में धर्म सनातन राक्षस-वश-शिरोमणि, नरपति, धन्य सत्-ग्राहक, धन्य आप, इस लक-द्वीप मे सत्-जल-राशि प्रवाहक, हे । ८६ धन्य सभी राक्षसगण, जिनने- किया असत् का तीव्र विरोध, धन्य धीर वे, अटल रहे जो- देख चण्ड रावण का क्रोध, आप सभी सज्जन गण के प्रति मै नत-मस्तक हो कर के,- कृतज्ञता-ज्ञापन करता हूँ, सब विजयीपन खो करके, रिपु न लखे मुझको वे भी जो रहे वीर मेरे प्रतिकूल, राम नहीं चाहता कि हो वह कभी किसी के दृग का शूल ।