पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८७

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पप्ठ सर्ग तल्लीन हुए, 11 . मत छोडिए धर्म-अवलम्बन, करिए सत्याचरण सदा सदा सत्यनारायण को भज, हरिए सब जग की विपदा, मगलमस्तु, आप सब रहिए धर्म भाव यो कह मौन' हुए सीतापति, निज प्रासन आसीन हुए, जन-गण के कण्ठो से निकला दाशरथी का शुभ स्तवन, 'रामचन्द्र की जय' की ध्वनि से गूंज उठा सब सभा-भवन । ११२ लकाधीश्वर धीर विभीषण स्वर्ण सिंहासन पे, मानो रामचन्द्र का तप-फल उट्ठा ज्वलित हुताशन से, आगे आकर झुके विभीषण, रामचन्द्र के चरणो मे, मानो मन एकाग्र हो गया भक्ति-भाव उपकरणो मे, हृदय लगाया लकेश्वर को, उठ करुणाकर रघुवर न, अथवा वैभव को अपनाया थती तपस्वी बनचर