पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९७

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पप्ठ सर्ग देव, आपके प्रति प्रगटाऊँ कैसे निज कृतज्ञतानन्द ? आज आपकी पुण्य कृपा से छूट गए सब भव-भय फन्द, छन्दहीन, गतिहीन, वमुरा, ताल रहित था जग-जीवन, उसे अापने गति-मय, यति-मय, सुस्वर किया, अहो श्रीमन्, आप धन्य है धन्य सुलक्ष्मण, धन्या जनक सुता सीता, जिनने भीति-मुक्त कर दी है वसुन्धरा रावण - भीता। १३२ बीता रावण-युग आक्रान्तक, बीत गईं भय की घडिया, मगल-करण राम-युग पाया, टूटी वे बन्धन-कड़ियाँ, सरण चिरन्तन, क्षण-आवर्तन, गमन - आगमन नित नूतन,- जीवन का व्यापार यही है नित स्थापन, चला गया जो, भला गया वह, जो प्राया,-अच्छा आया, यो आने जाने ही के मिस, प्रकटी है विभु की माया । नित उन्मूलन ५८३