पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९८

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अम्मिला सन्धि - काल मे उठ आती है, सिहावलोकन - मयी चाह, भला, बुरा जो कुछ बीता है, उसे सोच होता है दाह, आह एक कढ ही आती है गत दिवसो की सस्मृति से, हो ही जाता है मनमोहित, भली-बुरी गत सस्कृति से, अत विभीषण गत सस्मृति से, हो मोहित, तो अचरज क्या गत होकर जो प्राण न खीचे तो सम्मरण-स्वभावज क्या ? ? at विगतः युगल-चरण तो आरोपित है अमल राम-युग के क्षण मे, किन्तु, नयन मुड कर उलझे है, - काल के दर्शन मे, बीत गया, जीवन का वह भी-- एक काल था, वह बीता, खेद यही है कि उस काल मे नही हो सका मन-चीता, यदि ऐसा हो सकता, तो फिर- होती नही युद्ध-पीडा, सहज-सहज ही इस नवयुग की होने लगती नव-क्रीडा ।