पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६१३

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षष्ठ सर्ग ?" " "तो क्या दरस लालसा, लालन, तुम्हे सताती ननिक नहीं "हॉ नाही में दे सकता हूँ, इसका उत्तर क्षणिक कही ? स्वय विदग्धा हो तुम, भाभी, तुम कर चुकी तत्व - दशन, तुम सब कुछ जानो हो, कैसा-- होता हिय - मघर्षण, कैसे कहूँ कि रच नही है हिय मे दरम-चाह अवशेष ? किन्तु चाह में दाह नही है, नही अशान्ति-भ्रान्ति का लेश । मिलन - चटपटी, लगन - अटपटी, दरस - टकटकी है बाकी, पर अब होने लगी लगन को, सभी ठौर पिय की झाकी, 'सत्य प्रेम की सुसफलता मय यह निर्वैर - बत्ति जागी, दूर-पास सब जगह गया लखन, ऊम्मिला दवि, ऊम्मिला के सनेह ने दी है मुझको शान्ति अमित, उसने ही हिय मध्य किया है 'सोह' अनहद नाद ध्वनित । अनुगगी,