पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६१५

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षष्ठ सर्ग भाभी, १६७ "निश्चय भाभी, स्मृति अतीत की, समोहक, आकर्षक पुन स्मरण उन गत दिवमो का, निश्चय ही हिय-हर्षक है, अब | तब | प्रोफ्फो कितना अन्तर कितना घटना - पूरित काल । कितनी-कितनी कठिन परीक्षा । कितने-कितने जग-जजाल । देवि, हृदय भी हम लोगो का क्या विराट रग-स्थल है? कौन कहेगा इसको, कि यह हमारा हृत्तल है ? १६८ नहो रहा यह हृदय, हृदय अब है इतिहास - ग्रन्थ यह एक, जिसके कम्पन - पृष्ठाकित है, नर-श्रम कथा अनन्त, अनेक, क्या पुराण, इतिहास बना है, हम सबका गत हिय-कपन, प्रति-प्रति कम्पन मे नवरस के सघर्षण का है अकन, मानवता की प्रगति, परागति, श्रान्ति, क्रान्ति सब अकित है हिय-इतिहास-ग्रन्थ का, भाभी, पृष्ठ-पृष्ठ मति रजित है ।