पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६१६

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ऊम्मिला मन के कृतियाँ ये 9 अति चित्रित है चित्त-चित्रपट, झलक रहे है रग कई, चित्रलिखे-से लख पडते है भाव अनग कई, रखाकित है भूमि-भार - हर सँग-सग कई, कही सघन-वन, कही कुटी है, कही तुग गिरि-श ग कई, बाधाओ से आच्छादित है रघुकुल-कमल-पतग कही, कही राम सीता - लक्ष्मण के हिय की प्रगट उमग रही । १७० नयनो के सम्मुख जब प्राता, उन गत दिवसो का यह चित्र, हे भाभी, तब हो जाती है मेरे मन की दशा विचित्र, भूल-भुलैया मे फंसती है मनोवृत्तियाँ लक्ष्मण की, मनोमोहिनी, हृदय हारिणी, है सब स्मृतियाँ गत क्षण की, केवल इस अतीत की स्मृति पर है अवलम्बित मानवता, स्मरण-पुज कर नर को प्रकटी या माधव की माधवता । ६०२