पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६२९

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षष्ठ सर्ग उमडेगे, निश्चय, वरदे, स्वजन-मिलन का, होगा बडा विकट अवसर, निश्चय, उस क्षण हृदय हमारे, बरबस भर-भर, निश्चय प्राणो मे आकुलता, चचलता, होगी तडपन, 'निश्चय, भाभी, इन हृदयो मे मच जाएगा भीषण - रण, पर तुम हो विदेह की बेटी, दशरथ की, तुम हो सहगामिनी राम की, विकट साधना के पथ की । पुत्रवधू हो का तव तपस्विनी अनुजा जिस क्षण, दृग मे सचित नेह भरे,- . सम्मुख आ जाएगी, भाभी, उस क्षण ईश सहाय करे, यदि उस क्षण यह गलित न होवे चौदह वर्षों वैराग्य, यदि रह सकूँ अचचल उस क्षण, समझूगा मै अपने भाग्य, भाभी, प्रथम, सीय-दर्शन-क्षण अग्रज की वह निश्चल मूर्ति, मुझे ऊम्मिला-प्रथम-दरस-क्षण निश्चय देगी बल की स्फूर्ति ।