पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७६

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री?" १६० तब माता सीता से बोली-“सीते, बेटी प्यारी, तुमने कभी रुदन की कोई मूर्ति लबी है क्या, "ना, माँ, मैने उसकी मूरत कभी नहीं देखी है, क्या तुम ने अपने जीवन में कभी उसे पेखी है ?' १६१ "हॉ, सीने, अब एक चित्रपट तुम्हे दिखाऊँगी म, रोनी सूरत देख चीन्हना तुम्ह सिखाऊँगी में, मेरे सन्निधान मे रोदन मूर्ति रखी है, देखो लो, इसकी प्रति चर्या को तुम अपने हिय मे लेखो।' १६२ माता ने यो कहा ऊम्मिला को जब इगित करके हास्य-उदधि तब उछला अपनी सीमा लघित करके, उठी खिलखिला सीय जनकजा, औ' रानी मुस्काई, विहँस ऊम्मिला ने गोदो मे अपनी ज्योति छिपाई । "लली ऊम्मिले, मुझे बताओ पहला प्रश्न तुम्हारा, जिसके कारण चचल मन है आज सतृष्ण तुम्हारा, सच्ची गुर्वाणी के सम तुम एक-एक पृच्छा को, पूछ-पूछ कर सुनती जाओ, तृप्त करो इच्छा को।" १६४ "वाह, अरी मेरी माँ, कैसी अच्छी माँ तुम हो, गे, मेरी एक-एक बातो को अब तुम बतलाओ, री, तात चरण के आने पर तुम क्यो मुस्काती हो, मा मुख पर क्यो लाली आती है, यह तुम बतलायो, माँ ?" 2