पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७९

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? २०५ मिथिला-राज्ञी मन्द विहँस कर बोली उत्फुल्लित हो,- ज्यो दाम्पत्य-भावना आई मुखरित औ' मुकुलित हो,- "ये दोनो बहने बन बैठी है मेरी गुर्वाणी-- आज परीक्षा, अहो, ले रही है ये दोनो ज्ञानी । २०६ मुझको घेर रही है सन्तत पूछ-पूछ कर बाते, आप स्वय आकर के इन को क्यो न यहाँ समझाते ? सीता पूछ रही है , माता ब्याह किसे कहते है सब समाज में पति-पत्नी के जोडे क्यो रहते है ? २०७ तृप्त कीजिए आप सलोनी सीता की इच्छा को, शान्त कीजिये मम गुर्वाणी की अबोध पृच्छा को मै उत्तर दे चुकी ऊम्मिला की प्यारी बातो के है ऊम्मिला तुष्ट सुन उत्तर उन सारी बातो के ।" २०८ यो कह प्रमुदित हो रानी ने पहिनाई वह माला । मिथिला-पति धीरे से बोले-“मोह-पाश क्यो डाला- तुम ने मुझे बाँध रखने को, इस कच्चे धागे मे ? कर्म-युक्त हूँ बँधा तुम्हारे भावो के आगे मैं।" ) "प्रिय, जगदीश्वर की ग्रीवा मे प्रकृति प्रिया ने डाला- उन्ही ईश के नियमो का यह पाश अमित गुण वाला। मैने भी ग्रंथी है माला उन प्यारी कलियो से,- चुनी गई है जो त्वदीय इन दो प्यारी ललियो से।"