पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/८१

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स्वय ईश से उनकी मुग्धा माया लिपटानी है, उसने जग के इस मस्तक पर यह चद्दर तानी है, इसी न्याय से नर समाज मे आन मिली है नारी, इसी न्याय से माँ से बेटी छिन जाती है प्यारी । समझी सीते, जामो अब तुम गुर्वाणी के गृह मे, तुम सब पहुँचोगी कुछ दिन में इन प्रश्नो की तह में, देखे, आज कौन जल्दी से सूत्र-पाट करती है, क्यो ऊम्मिले ?""तात, हम पाठो से कभी न डरती है।" २१७ यो कह कर दोनो धीरे से चल दी शिक्षालय को, एक दूसरी के सँग पहुँची वे शुभ दीक्षालय को । "तुम कुछ समझी तात चरण की सब, जीजी,वे बाते?" "अरी अम्मिले, ब्रह्म सूत्र की सोचो तुम अब बाते ।" इधर नृपति राज्ञी से बोले-"सुनो, अहो कल्याणी, क्या-क्या बाते पूछ रही थी ये दोनो गुर्वाणी ?" "पूछ रही थी, पितृदेव के आते ही यह लाली पान बिछा देती है क्यो तव मुख पर सुन्दर जाली ? २१६ और पूछती थी कि मालिका क्यो उनको देती हो? फिर उस मे से एक माल क्यो उन से ले लेती हो? पूछ-पूछ कर ऐसी ही कुछ बाते, ये कलिकाये- पुलक-पुलक कर विकसित होती थी ये नव ललिताएँ।"