पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१०७

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चित्र०-तो क्या अपने पिता से लड़ोगी?

ऊषा--लड़ने को जी तो चाहता है, परन्तु धर्म रोकता है। क्या करूं--

एक ओर पतिदेव दूसरी ओर पिता है।
दो पाटों के बीच फंस रही यह उषा है॥

चित्र०-मेरी राय तो यह है कि तुम अब अनिरुद्ध को भूल जाओ।

ऊषा--यह सबसे ज्यादा असंभव है।

चित्र०-क्यों?

ऊषा--नारी धर्म की बात है!

चित्र०-वह बात क्या है?

ऊषा--नारी एक बार भी जिसको अपना पति बना लेगी, उसी को पति समझती रहेगी। फिर दूसरे पुरुष की ओर दृष्ट हालना भी उस के लिए घोर पाप है। संसार में नारि जाति के लिए इससे बढ़कर दूसरा पाप नहीं होसकता।

एक बार जिसको वरा है वह ही भरतार।
झिंझरी नैया का वही पति है बस पसवार॥

चित्र०-पर तुम्हारी और अनिरुद्ध की पहली मुलाक़ात तो स्वप्न की मुलाक़ात है।

ऊषा--यह वो और भी ऊंचे आदर्श की बात है। नारी यदि स्वप्न में भी किसी को स्वीकार करले तो उसे फिर दूसरे पुरुष से विवाह करने का अधिकार न होना चाहिए--