पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/११३

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अवतीर्ण असुर के हुई सुर बाल आनकर।
धूर में जन्म लेता है ज्यो लाल आनकर।

वाणा॰-छोकरे, तू यह भी जानता है कि तू किसके आगे खड़ा हुआ है?

अनि॰-हां, जानता हूं। मैं इस नगरी के तुच्छ राजा वाणासुर के सामने खड़ा हुआ हूं।

वाणा॰-वह वाणासुर जिसने शिवजीकी बड़ी तपस्या की।

अनि॰-हां, वह वाणासुर जिसने अपनी प्रजा पर बड़ी हिंसा की।

वाण॰-वह वाणासुर जिसने अपने तप से शिवजी को प्रसन्न किया और वरदान पाया।

अनि॰-हाँ, वह वाणासुर जो तप करके इतराया। अपने इष्टदेव पर ही लड़ने को धाया। तब अंत मे वरदान के बहाने अभिमान पूर्ण होने का प्रसाद पाया:-

नहीं कुछ मर्तबा तू जानता है देवताओं का।
किसीने पार भी पाया है ऊंची आत्माओं का॥
तेरा अभिमान दलने को यहाँ मुझको पठाया है।
मै उनका अंश हूं और तेरी ऊषा उनकी माया है॥

वाणा॰-यह बालक अवश्य वध करने योग्य है।

अनि॰-यह राजा अवश्य दंड के योग्य है।

वाणा॰-इतना छोटा मुंह और इसनी बड़ी बातें!

अनि॰-इतना बड़ा मुंह और इतनी छोटी बातें!