पृष्ठ:कंकाल.pdf/१८१

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"राम एक तोपरा-त्तिय तारी। माम कोटि उत कुर्मात सुधारी ।। पस-तिय सारी–गौतम की पत्नी अल्मा को अपनी लीला करते समय भगवान ने तार निगा । वह भवन के प्रमाद , ईन्द्र के दुराचार है, घी गई । उसने पछि चै--इच लोक वै देवचा से-छल किया। वह पमिरी इस लोक के सर्वश्रेष्ठ रत्न सताब से वनित हुई । इस पन में शाप दिया, वह पत्थर हो गई। वाल्मीकि ने इस प्रसग पर लिया है—वतिगत निराहारा तृप्यन्ता भरमशापिनीं। ऐसी कठिन तपस्या करते हुए, पश्चात्ताप न अनुभव करते हुए वह पत्थर नहीं तो और क्या थी ! पतितपालन में चसे शप-विमुक्त किया । प्रत्येक पापो के दर्श की सौभा होती है। सूत्र काल में अहुल्या-सी स्त्रियों के होने की राम्भावना है। वात्रि कुर्मान तो बनी है, वह जब चाहे किसी को अहल्या धना सन्नी हैं। उसके लिए पाय -गधान का नाम-स्मरण । माप लोग नामस्मरण भी अभिप्राय प न समय में कि गर्भ-राम चिल्लाने से नामस्मरण हो गया ‘नाम विपिन नाम जप्तने में । रा प्रकटत झिमि मोल रतन ते ।। इस 'राम' शन्यवान उस अबिल ब्रह्माण्ड में रमण करने वाले पतितपावन के रात्ता की रात्र स्वीकार करते हुए स्वैस्य समर्पण करनेवाली भक्ति के गाय उसका स्मरण करना ही पथार्थ में नामस्मरण हूँ ! | वैरागी ने कथा समाप्त को । तुली थीं। सब लोग जाने लगे । श्रीनन्द्र भी चलने के लिए उत्सुक था; परन्तु किशोरी की हुदय बाँप य्हा का अपनी दशा गर, ओर पुनकिन्न है' हा था भरधावा कै गहिर पर जाने शिवापुर्ण नेत्रो से देखा कि सरयू प्रभात में तीव्र आलोक में लहराता हुई बह रही हैं। इन्हें सास हो घना था । अञ्च पाप और उस मुक्ति का दर्जन रहस्य प्रतिभाक्षित हो रहा था । पहली ही बार उससे अपना अपराध स्वीकार किया, और यह उसर्वे लिए अच्छा अवसर था कि उग़ क्षण असे उद्धार को भी आशा थी। वह न्यस्त हैं। इठ ।। | प्रगती अग्र स्वस्थ हो ची थी। विकार शा दूर हो गये थे, किन्तु दुर्बलता बनी हो । वह हिन्दुधर्म को चोर अपरिचित कुल से देखने यो थी, उसै सुई भनोरंजक दिखलाई पड़ा थी । बहु भी चार्च के साथ श्रीचन्द्र भाले घटि र दूर पैठी हुई, मरमू-तट का प्रमाति और उसमें हिन्दूधर्म के लोक को समूह दे रही थीं। १६६: प्रावि चाईमय