पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९५

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राय सुनते हैं; राव सोहा मानते हैं। किन्तु सदाचार की प्रतिश... अर्पण धरना होगा घर्म पी यज्ञवेदी पर मन की स्वातंत्र्य } पर रो दिमा, मन । स्वद्वन्त्र रहा | अन्न उरी एतः राह पर नहाना होगा ।वह बोर हो वोन उठा---गाना ! या पहा !! | गला चिन्तित मगन का मुंह देय रही थी। वह ग पो, बोलीपुग रहे हैं। मंगम ? । मंगम गोपः उठा। उस ६, जिग्न मोजता । अ मध में मु¥ी पुतार रहा है । यह दुरन्त यजा--ही नहीं माना ! | आज पहला जर या, अप गाला ; भंना उनके नाम से पुकारा । रामें मरना है, हम को छाया भी। मंगल गं अभिनेता का अनुभव गिया । ४स पला । | तुम कुE पत्र रहे थे । मह कि स्त्रिमा रोग प्रेम गर मरती है ? में FT होगा- नहीं ! ब्यबहार न ममतामा होगा—यह सब मन है ! मही न ? पर में रहती है गर गरम है..इत्र का हृदय...... प्रेम का रंगमंच है। तुमने शास्त्र गढ़ा है, फिर भी तुम स्त्रिगो दुदय हो। परने में उतने मुल नहीं हो, योकि... च में रॉकर मंगन में पुष्टी---और तुम कैसे प्रेम का रहस्य निता हो मामा ! तुम भी ती .. | स्विप का महू जन्मसिद्ध उरिधिकार है मंगन ! इस पोजना, परखना मही होता, केही र ले आना नहीं होता। बहू बिरा रहता हैं असावधानी सेधनबेर म विभूति के ममान ! उभे राहाभकर वैयन एयः और अप करना गडा है-इतना ही तो ! सवार गाना ने वहा ।। और पुरुष का...?--मेगन ने पूछा। द्विराय गाना पड़ता है, इरी गाना पड़ता है। अगर में जैसे उसमें मषा फक्षिा थी और बहुत विमतियां है, वैसे ही यह भी एक है। पद्मिनी ने रागान अल-परशा स्त्रियाँ ही जानती है, और पुरुष वैयन्न अभी जती दुई राय को उदार अजान के गद्दा विगेर देना हो त? जरा है !--फळेफएJ गाना तन गई थी। मंगल ने दैया--यह ऊर्गस्थित सौन्दर्य ! बात बजने के लिए गाना ने पाठ्यक्रम-म्विन्धी अपने मातम्भ कहे सुनायै और पाटणारा में शिक्षा का मनोरंजः निजाद छिड़ा । मंगल उस कानादारिन ः तजालों में बार-बार जान-बूझकर अपने को पधा देता । अन्ना में मंगा में स्वीकार किया कि वह पाठभ यदा जायगा । सभ पाने में बाघको १७६ : प्रधाद,दाङमय