पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९७

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| एक दिन सवेरे की गाठी से वृन्दावन के स्टेशन पर नन्दो और घण्टी उतरी। बाम स्टेशन के समीप ही, सद्दन पर ईसाई धर्म पर ध्यान दे रहा था पहू देवमन्दिरों की मात्राएँ तुम्हारे मन में क्या 'भान तातो है—पाप की या पुण्य फी ? तुम जब पापों के बोझ भे लदकर, एक मदिर की दीवार से टिककर लम्चौ रारा श्रीपते हुए सोचोगे कि मैं इसने छु जाने पर पवित्र हो गया, तो तुम्हारे में फिर से पाप करने की प्रेरणा बढ़ेगी ! महू विषबान कि दैवमन्दिा मुझे पाप से मुक्त कर देंगे, अम हैं। सहसा गुनगे बालों में से मंगल ने कहा-ईसाई ! तुम जो कह रहे हो, यदि यहीं दीया है, तो इस भाव के प्रचार का मुनरो वा दायित्न तुम लोगों पर हैं, जो कहते हैं कि पश्चाताप करो, तुम पवित्र हो जाओगे । माई, हुम लोग तो इस सम्बन्ध में ईश्वर को भी इस झंझट से दूर रहना चाहते हैं 'जो जस करे सो तल फल नापा !' सुननेवालों ने ताली पीट दी। थायम एक घोर सैनिक की भाँति प्रत्यावर्तन कर गया 1 व मौड़ में से निकलकर अभी स्टेशन की ओर अक्षा भी कि सिर पर गश्रो लिने हुए नन्दो . पीछे घण्टो नारा हुई दिखाई पड़ी। बहू उतेजित होकर लपका, उसने मुकारा,--पपदी ! भण्ट्री पैः हृदय में सनसनी दोद गई । इराने नन्द का गन्या पकड़ लिया । धर्म का माता ईसाई, गशु के पदे अपना गला फासार उछलने लगा। उसने कहा-पण्टी । अनौ, हम तुमको छोड़ कर साचार हो गये । डातङ्ग! मयभीत घण्टी सिकुडी जाती थी। नन्दो ने इपटकर —तु कौन है रे । क्या सरकारी रान नहीं रहा । आर्गे लढा, तो ऐसा शपट्ट लगेगा कि तैरा ट्रोप है उसगा ! १७६ : प्रसाद पाड्मम