पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९९

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हने से फिर भीड़ लग जायगी। आइए, मेरे पीछे-पीछे चलो आइए ! --मंगल ने थापूर्ण स्वर में ये शब्द कहे। दोनों उसके पीछे-पीछे घरा पोंछती हुई चली। | मंगल को गम्भीर रष्टि से देखठे हुए गोस्वामीजी ६ पु–तो तुम क्या पाते हो ? गुरुदेव ! आपकी आज्ञा का पालन करना चाहता है; सेवा-धर्भ की जो दी। आपने मुत्ते दीं है, उसको प्रकाश्य रूप से व्यवहुत फरने की गेरी इच्छा है । देपिए, धर्म के नाम पर हिन्दू स्त्रियो, शुद्रों, अतोनाही, यही प्राचीन पदों में पड़े जाने वाली मागियोनियो—की बचा दुर्दशा हो रही है ! क्या इन्हीं के लिए 'भगवान् श्री ने परागृति भने को अवस्था नहीं दी है ? सपा में राय उनकी दया से रचित हो रहे । मैं आर्यसमाज का विरोध करता मा मेरो धारणा थी कि ग्रामक समाज में कुछ भीतरी सुधार कर देने से काम चल जायगा; किन्तु गुरुदेव ! यह आपका शिष्य गगल आप ही की शिक्षा से आते महू हूने का ग्राहस करता है कि परिघर्तन थायरस है; एक दिन मैंने अपने मित्र विजय का इन्ही विचार के लिए विरोच किया था; पर नहीं, अब मेरी यही दुई धारणा हो गई है नि इस जर्जर धामि समाज में शेर विग्न है वै अलग पवित्र वन रहे, मैं उन परितो की वा असे, जिन्हें लोवरे लग रही है---जो बिलबिला रहे हैं । मुझे पतितपादन के पदों का अनुसरण घरगे घई आशा दीजिए । गुरदेव, मुरासे बढ़कर मौन पतित होगा ? कोई नही, आज मेरी आँखें खुल गई हैं, मैं अपने आगाज मनै एकत्र करूंगा और गोपाज से आम प्रार्थना करूंगा कि भगवान शुभ यदि पायन करने की शक्ति हो, तो आञ।। अहंकारी समाज ने दम्भ से पुद-दलितों पर अपनी मरणा- पदन्विनी वरमा । | मंगल पर धोखा में उत्तेजना के ऑ। ये । उसका गला भर आया था। यह फिर पहने सगी–गुरुदेब ! उन स्त्रियों की दशा पर निगार औजिए, जिन्हें इल हो थाम में श्राश्रय मिला है। मंगस ! पया तुमने भी भाति विचार कर लिया, और विचार करने पर भी तुमने यह सा-प्रदम निश्चित किया है ? ~~-म्भिीरता री नृभिारणं ने पूछा। | गुर । पर कार्य करना ही है, आप उसे छवित रूप । * दिपी जाएँ । निरंजन से परामर्श करने गर - तो मही निष्कर्ष निशा है कि भारतरपि सापित होना चाहिए । १८० : प्रसार यमप