पृष्ठ:कंकाल.pdf/२००

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परन्तु तुग गैरा सहयोग उसमें न प्राप्त कर सगे। मुझे इरा अम्मर में विषयास नहीं है, यह मैं स्पष्ट मह देना चाहता हूं। मुझे फिर कोई एकान्त कुटिया पोननी पगो—मुस्कराते हुए शरण में वा ।। मार्ग आरम्भ हो जाने दीजिए । गुरुदेव ! तन अदि आप इसने अपना निर्वाह न देखें, तो दूसरा विचार करे। इस कल्याण-धर्म के प्रचार में पा साप । विरोधी यनियेगा ! मुझे जिस दिन छापने रोषाधर्म ने उपदेश देकर वृन्दावन से निर्वासित किया था, उसी दिन से मैं इसके लिए उपाय खोज रहा था; किन्तु आज जब मृयोग उपस्थित हुआ, देवनिरंजननी जैसा योगा मिल गया, तब अप ही मुवै पीछे हटने को कह रहे हैं। | पुर्ण गम्भीर सी के साथ गोस्यागजी कहने लगे-जब निर्वासन का बदला लिमे विना तुम कैरी मनोगे ? मंगल, अच्छी बात है, मैं शीध्र प्रतिगत का स्वागत करता है। किन्तु, मैं एक बात फिर कह देना चाहता है कि मुझे व्यक्तिगत पवित्रता के उद्योग में विश्वास हैं, मैंने उसी को शाम खगर उन्हें प्रेरित हिया था। मैं यह न स्वीकार करूंगा कि वह भी मुझे न करना चाहिए था। किन्तु, यो नार का, यह नौटाया नही जा सकृता । तो फिर करो, जो तुम लोगों की इच्छा ! मगत नै नहा- गुरुग्र, क्षगा कीजिए-आशीर्वाद दीजिए। अधिक न फार वह शुष हा गया । यह इरा रामग्र विसी भी तरह गोस्वामी जी में भारत-घि झा बारम्भ मारा लिया जाता था । निशन ने जब वह चमाचार सुना, तो उसे अपनी विज्ञ पर प्रसन्नता हुई —दोनो उत्साह से झागे का कार्यक्रम बनाने जगे । काष : १८१