पृष्ठ:कंकाल.pdf/२१६

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‘वो निकोप यंत्र !' बहु विस्तार उठो-मेरे रोप हुए निधि ! भैरै नत ! यह दिन देउवा चिरा प प नि है मेरे भगवान् । | गं तो आश्चर्य-फित शा। सब शाहस यटोरगर उगने कहा-सो पा र चमुन तुम्ही मेरी माँ हो ! तोनों के आनन्दाबु बोध तहकर हुने मग ।। सरता ने माता के सिर पर हा फेरते हुए कहा-अटो ! तैरे भाग्त्र मुझे मेरा सोया हुआ धन दिख गया ! गाचा मह जा रही थी ! पगड़ एद, आनन्दमय फतृहप रौं पुर्तत हो जटा । उसने रारदा के पर गाकर गन्हा--मुझे तुमने छोद दयों दिया था मां ? । | उस भावनाओं को समान थी। कभी यह जौन-भर के हिसाब को बरावर हुभा अक्षता, की उरो भान हुवा कि अग से संसार में मेरा ओवन प्रारम्भ हुशा है। मला ने कहा- कितनो भाशा म यौ, यह तुम पर जानोगे । तुमने । अपनो माता के जीवित रहने गौ मुल्पना भी न को होगी। पर भगवान की दया * पर मेरा निलारा था और उगु मेरो भाई र सौ । | उ हुई नै क्षतिपत चचिन न रही। उसने भी बहुत दिनों बाद अफ्नो एगो ते तौटामा । । भर में बैठी हुई नन्दो ने भी इस ग्रन्थाद को सुना, वह इचाप पटी भी मान्य होकर अपन गाता के काम ज्ञापे काम में हाथ बंटाने सगी । होकने : १७