पृष्ठ:कंकाल.pdf/२२४

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भाष रहकर भनि जैन, एक प्राचीन हि हैं । ममाझ न सुरक्षित पाने के लिए छमें हंगठन में बिक मनोवृत्तियों की सtry स्कार करनी होगीं । सय ॐ लिए एक पत्र देना होगः । समस्त प्राकृतिक आकाक्षाओं को पूत कै आदर्श में होनी चाहिए । नेइ...'रास्ता बन्द है 1'-अङ्ग देने में गम न भेगा । लोकापवाद-होसार' का ए भ है, कि गल्ला अत्याचार है । आप लोग जानते होगे कि रामचर्च में भी लोकपद के ामने सिर झुकड़े किया । ‘लोनापवाद वगायन काहि मैक्षि' और इसे पूर्वका ने 1ो मर्यादा केहते हैं, वनका मर्यादापुरुषोत्तम भाग पड़ा । वह धर्म की मर्याग में थी, थरतृशः समाज इसिन की पपा था, जिसे संसद में कार किया और अमाचार शहर जिया, मनु विर्यन-इड से विचारने पर देश, कान और समाज । जर्षा परियो में पनै हुए सर्वसाधारण नियमभंग अपराध या पाग कः । गिनै पायं; क्या त्मिक नियम अपने पूर्वी निगम में बाधक होते हैं। या छगन अपूर्णता को अ रने के लिए वन हैं। रहते हैं । गीता-मिरेसने या इतिह-वधूत महान् सामाजिक अत्याचार है, और मै नयाधार अपनी दुर्बल संगिती स्त्रियों पर इश्यक शाठि के पुरुषों ने किया है। किसी-किस समुद्र में तो पाप के मन में स्त्री का है। उल्लेख है, और पुरुष निष्पाप हैं। पह भ्रान्त भनौजूति अनः शमाजिक विस्पा के भीतर काम कर रही है। मामण भी यक्ष ई-वध के इतिहास ही है, किन्नु नारी-नदिन का हर्जाघ्र इतिहास की बाल्मीकि ने म्नेि ॐ अम्रिकार की पोप है 1 रामायण में समाज में दो दृष्टिको हैन बौर जाल्मीकि के दोनों निर्धन थे, एक वडा भारी अपार कर पाता था और 7 ए पीरि अर्वग्नलमा की सेवा कर मुका था । केही न होगा कि उन 4 में कौन दिया हुआ ! पुच्चै पम् अाह्मण वाल्मीकि की बिभुति गार में का भी महान् हे। आज भी उस नन्दक हा पायो मिर्ती है, परन्तु इं!ि तो, आता ने पर हुए और निन्दनो से नै हो मन हैं ? शान भी हो मान वैसे ही तों से भरा पडा है---नं, स्वय भनन हर्ग पर भी दूध व श्ता की अपनी जीविका का साधन धनायै ।। में इन बुरे उपकरणों को दूर धरना वाहिए । म तिनो निती में दूसरी बने दया रबरी, इवी है। हमारी कनिती अली आई । स्त्री-ज्ञान में प्रति मम्मान करना मना होगा । हम लोगों को अपना इद-द्वार और कार्य विस्त करना हुए। मान-संस्कृति के प्रचार के लिए इ बृहदायी हैं। कि-मादित्य, शभुईग्स र धन बी र हुममें है। संसार भारत के मुन्ग व आगो में है, हम इ कंकाल : २०५