पृष्ठ:कंकाल.pdf/७६

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किशोरी और उसकी सहेलियाँ भी आ गई । एक सुन्दर कुरमुढे या, जिसमें सौंदर्य और सुचि का समन्वय पा । शहनाई के बिना किशोरी का कोई सत्साह पूरा न होता पा, बाजे-गाजे से पूजा करते पी मनौती थी । मैं वा याने भी ऊपर पहुँच हुवे में । अब प्रधान आब्रमणकारियों की दज्ञ पहाटी पर पढ़ने लगा । थोड़ी ही देर में पहाड़ी पर संध्या के रंग-बिरंगे यादलों का दृश्य दिप्राई देने लगा। देवी का छोटा-सा मन्दिर हैं, यहीं सुध एकत्र हुए । कपूरी, बादामी फीरोजी, घानी, गुलेनार रंग के पूँघट उलट दिये गये । यहाँ पढे की आव- श्यकता न थी । भैरबी के स्वर, मुक्त होकर पहाड़ी से झरनों की तरह निकष रहे थे। संचमुच बसन्त बिल पड़ा। पूजा के द्वारा ही, स्वतन्त्र रूप से में सुन्दरियों भी गाने लगी। मगुना चुपचाप कुरैने यी डाली के नीचे बैठी थी। वैग का सहारा लिये वह पूप से अपना मुख बनाये ची। किशोरी ने उसे हठ करके गुले- नार चादर घोड़ा दी। पीने से लगकर उस रंग ने यमुना कै मुष पर अपने चित्र यना दिये है। वह बड़े सुन्दर रंगणाजी थी। यद्यपि उनके भाव सांखों के नीचे की कालिगा मैं करूणा रंग में छिप रहे थे; परन्तु इस समय विताण आकर्षण उसके मुख पर था । सुन्दरता की होड़ लग जाने पर गानसिक गति दवाई न वा कती थी । दिनम जब सौंदर्य से अपने को अलग न रख मैका, यह पूजा होकर इसी के समीप एक विशालपण्इ पर जा बैठा। यमुना भी सम्भार वैठ गई थी। नप यमुना | तुगमो गाना नहीं अति ? --भात-पीत बारम्भ करने के इंग से विजय ने पहा ।। आता नयों नही; पर गाना नहीं चाहती हैं। क्यों ? यों हो । युछ वरने का मन नहीं करता ।। कुछ मी ? कुछ नही, संसार कुछ करने के योग्य नहीं । फिर क्या है- इसमें गदि पर थनगर जी सके, तो मनुष्य के बने सौभाग्य की बात है। परन्तु मैं केवल इसे दूर हो नहीं देखना चाहता। अपनी-अपनी ठिा 1 आप अभिनय करना चाहते हैं, तो कीजिए; पर कई स्मरण रखिए कि सब थनिय सयवैः मनौतुत नहीं होते। यमुना, आज तो तुमने रंगीन साड़ी पहनी है—यही सुन्दर लगती है! या फ जिय जय ! जो मिलेगा वही न पहनेंगी । —क्ति होकर यमुना में कहा । कंकास : ६७