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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/५२

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नाहर॰: ताज्जुब है कि तुम नकाब हटाने से इन्कार करते हो? जरा सोचो तो कि मेरी जुबानी तुम्हारा नाम इन लोगों ने सुन लिया तो पर्दा खुलने में फिर क्या कसर रह गई? क्या तुम्हारी सूरत इन लोगों से छिपी है? बीरसिंह, हम तुम्हें बहादुर और शेरदिल समझते थे। यह क्या बात है?

बीरसिंह ने फिर सर हिला कर नकाब हटाने से इन्कार किया बल्कि दो-तीन कदम पीछे की तरफ हट गया। यह बात नाहरसिंह को बहुत बुरी मालूम हुई। वह उछल कर बीरसिंह के पास पहुंचा तथा उसकी कलाई पकड़ क्रोध से भर उसकी तरफ देखने लगा। कलाई पकड़ते ही नाहरसिंह चौंका और एक निगाह सिर से पैर तक बीरसिंह पर डाल, खड़गसिंह की तरफ देख कर बोला, "मुमकिन नहीं कि बीरसिंह इतना बुजदिल और कम हिम्मत हो! यह हो ही नहीं सकता कि बीरसिंह मेरा हुक्म न माने! देखिए कितनी बड़ी चालाकी खेली गई! बेईमान राजा ने हम लोगों को कैसा धोखा दिया! हाय अफसोस, बेचारा बीरसिंह किसी आफत में फँसा मालूम होता है!!"

इतना कह नाहरसिंह ने बीरसिंह के चेहरे से नकाब खैंच कर फेंक दी। अब सभों ने उसे पहिचाना कि यह राजा का प्यारा नौकर बच्चनसिंह है।

खड़ग॰: नाहरसिंह, यह क्या मामला है?

नाहर॰: भारी चालबाजी की गई, यह इस उम्मीद में यहाँ बेखौफ चला आया कि चेहरे से नकाब न हटानी पड़ेगी, शायद इसे यह मालूम हो गया था कि मैं यहाँ आकर चेहरे से नकाब नहीं हटाता। मैं नहीं कह सकता कि इसके साथ हमारे दुश्मनों को और कौन-कौन-सा भेद हम लोगों का मालूम हो गया। यही पाजी बीरसिंह के कैद होने के बाद उसके बाग में बीरसिंह की मोहर चुराने गया था जो वहाँ मेरे मौजूद रहने के सबब इसके हाथ न लगी, न-मालूम मोहर लेकर राजा क्या-क्या जाल बनाता!

इतना सुनते ही खड़गसिंह उठ खड़े हुए और नाहरसिंह के पास पहुंच कर बोले:

खड़ग॰: बेशक, हम लोग धोखे में डाले गए। इसमें कोई शक नहीं कि इस कुमेटी का बहुत-कुछ हाल करनसिंह को मालूम हो गया, इन सब सरदारों में से जो यहाँ बैठे हैं जरूर कोई राजा का पक्षपाती है और जाल करके इस कुमेटी में मिला है।