पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५६
 


खड़ग॰: तुम चिन्ता मत करो, देखो, अब हम क्या करते हैं।

पाँचों आदमी वहाँ से आगे बढ़े, आगे-आगे हाथ में लालटेन लिए एक पहरे वाले को चलने का हुक्म हुआ। नाहरसिंह ने अपने चेहरे पर नकाब डाल ली। थोड़ी दूर जाने के बाद सड़क पर एक लाश दिखाई दी, जिसके इधर-उधर की जमीन खूनाखून हो रही थी।



१०


हरिपुर गढ़ी के अन्दर राजा करनसिंह अपने दीवानखाने में दो मुसाहबों के साथ बैठा कुछ बातें कर रहा है। सामने हाथ जोड़े हुए दो जासूस भी खड़े महाराज के चेहरे की तरफ देख रहे हैं। उन दोनों मुसाहबों में से एक का नाम शंभूदत्त और दूसरे का नाम सरूपसिंह है।

राजा: रामदास के गायब होने का तरद्दुद तो था ही मगर हरीसिंह का पता लगने से और भी जी बेचैन हो रहा है।

शंभू॰: रामदास तो भला एक काम के लिए भेजे गए थे, शायद वह काम अभी तक नहीं हुआ, इसलिए अटक गए होंगे। मगर हरीसिंह तो कहीं भेजे भी नहीं गए।

सरूप॰: जितना बखेड़ा है, सब नाहरसिंह का किया हुआ है।

राजा: बेशक, ऐसा ही है, न-मालूम हमने उस कम्बख्त का क्या बिगाड़ा है जो हमारे पीछे पड़ा है। वह ऐसा शैतान है कि हरदम उसका डर बना रहता है और वह हर जगह मौजूद मालूम होता है। बीरसिंह को कैदखाने से छुड़ा ले जाकर उसने हमारी महीनों की मेहनत पर मट्टी डाल दी, और बच्चन के हाथ से मोहर छीन कर बनी-बनाई बात बिगाड़ दी, नहीं तो रिआया के सामने बीरसिंह को दोषी ठहराने का पूरा बन्दोबस्त हो चुका था, उस मुहर के जरिए बड़ा काम निकलता और बहुत सच्चा जाल तैयार होता।

सरूप॰: सो सब तो ठीक है मगर कुंअर साहब को आप कब तक छिपाए रहेंगे, आखिर एक-न-एक दिन भेद खुल ही जायगा।

राजा: तुम बेवकूफ हो, जिस दिन सूरजसिंह को जाहिर करेंगे उस दिन। अफसोस के साथ कह देंगे कि भूल हो गई और बीरसिंह को कतल करने का