महीनों अफसोस कर देंगे मगर वह किसी तरह हाथ लगे भी तो! अभी तो नाहरसिंह उसे छुड़ा ले गया।
सरूप॰: यहाँ की रिआया बीरसिंह से बहुत ही मुहब्बत रखती है, उसे इस बात का विश्वास होना मुश्किल है कि बीरसिंह ने कुमार सूरजसिंह को मार डाला।
राजा: इसी विश्वास को दृढ़ करने के लिए तो मोहर चुराने का बन्दोबस्त किया गया था मगर वह काम ही नहीं हुआ।
शंभू॰: यहाँ की रिआया ने बड़ी धूम मचा रखी है, एक बेचारा हरिहरसिंह आपका पक्षपाती है जो रिआया की कुमेटी का हाल कहा करता है, अगर आप बड़े-बड़े सरदारों और जमीदारों का जो आपके खिलाफ कुमेटी कर रहे हैं बन्दोबस्त न करेंगे तो जरूर एक दिन वे लोग बलवा मचा देंगे।
राजा: उनका क्या बन्दोबस्त हो सकता है? अगर उन लोगों पर बिना कुछ दोष लगाये जोर दिया जाए तो भी तो गदर होने का डर है! हाय, यह सब खराबी नाहरसिंह की बदौलत है! अफसोस, अगर लड़कपन ही में हम वीरसिंह को खतम करा दिये होते तो काहे को यह नौबत आती! क्या जानते थे कि वह लोगों का इतना प्रेमपात्र बनेगा? उसने तो हमारी कुल रिआया को मुट्ठी में कर लिया है। अब नेपाल से खड़गसिंह तहकीकात करने आये हैं, देखें वे क्या करते हैं। हरिहर की जुबानी तो यही मालूम हुआ कि यहाँ के रईसों ने उन्हें अपनी तरफ मिला लिया।
सरूप॰: आज की कुमेटी से पूरा-पूरा हाल मालूम हो जायगा।
राजा: बच्चनसिंह बीस-पचीस आदमियों को साथ लेकर उसी तरफ गया हुआ है, देखें वह क्या करता है।
सरूप॰: खड़गसिंह तीन-चार सौ आदमियों के साथ हैं, अगर अकेले-दुकेले होते तो खपा दिये जाते।
राजा: (हँस कर) तो क्या अब हम उन्हें छोड़ देंगे? अजी महाराज नेपाल तो दूर हैं, खड़गसिंह के साथियों तक को तो पता लगेगा ही नहीं कि वह कहाँ गया या क्या हुआ। महाराज नेपाल को लिख देंगे कि हमारी रिआया को भड़का कर भाग गया। हाँ, सुजनसिंह के बारे में भी अब हमको पूरी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए।