को नाव चलाई जा नहीं सकती, अतः फिर दूसरे दिनके ज्वारके लिये रुकना पड़ेगा। तबतक लोगोंको अनाहार भी रहना पड़ता। दो दिनोंके उपवाससे लोगोंके प्राण कण्ठगत हो जायँगे। विशेषतः यात्री किसी तरह भी लौटनेके लिये तैयार नहीं हैं, वे किसीकी आज्ञाके बाध्य भी नहीं। उन सबका कहना है कि नवकुमारकी हत्या बाघ द्वारा हो गयी, यही सम्भव है। फिर इतना क्लेश क्यों उठाया जाय।
इस तरह विवेचनकर नवकुमारको छोड़कर देश लौट चलना ही उचित समझा गया। इस प्रकार उस भीषण जंगलमें समुद्रके किनारे वनवासके लिये नवकुमार छोड़ दिये गये।
यह सुनकर यदि कोई प्रतिज्ञा करे कि किसीके भी उपवासनिवारणके लिये कभी लकड़ी एकत्रित करने न जायेंगे, तो वह पामर है—यात्रीगणकी तरह ही पामर। आत्मोपकारीको वनवास में विसर्जनकर देनेकी जिनकी प्रकृति है, वे तो चिरकालतक इसी प्रकार आत्मोपकारीको विसर्जन करते ही रहेंगे—किन्तु ये लोग कितनी ही बार वनवासी क्यों न बनाते रहें, दूसरेके लिये लकड़ी एकत्रित कर देनेकी जिसकी प्रकृति है, वह तो बारम्बार ही इसी तरह आत्मोपकार करता रहेगा। तुम अधम हो—केवल इसीलिये हम अधम हो नहीं सकते!