पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/१३

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:३:

विजनमें

“Like a veil,
Which, if withdrawn, would but disclose frown,
Of one whose hate is masked but to assail;
Thus to their hopeless eyes the night was shown,
And grimly darkend o'er the face pale.”
—Don Juan

[१]

जिस जगह नवकुमारको त्यागकर यात्री लोग लौट गये, आजकल उसके समीप ही दौलतपुर और दरियापुर नामके दो छोटे-छोटे गाँव दिखाई पड़ते हैं। किन्तु जिस समयके वर्णनमें हम प्रवृत्त हुए हैं, उस समय वहाँ मनुष्योंकी बस्तीके कोई भी चिन्ह नहीं थे। वहाँ केवल जंगल ही जंगल थे। किन्तु बंगालके सूबेमें हर जगह अधिकांश भूमि जैसी उपजसे भरी रहती है, यहाँ वह बात नहीं है। रसूलपुर के मुहानेसे लेकर स्वर्णरेखातक विस्तृत कई योजनकी राह बालूके बड़े-बड़े ढूहोंमें वर्तमान है। थोड़ा और ऊँचा होते ही अनायास बालुकामय ढूह पहाड़ी कही जा सकती थी। आजकल वहाँके लोग उसे 'बालियाड़ी' कहते हैं। इन बालियाड़ियोंकी उच्च धवल शिखरमालाएँ मध्यान्ह सूर्यकिरणमें अपूर्व शोभा पाती हैं। उनपर ऊँचे पेड़ पैदा नहीं होते। ढूह के तल भाग में सामान्य वन जैसा दृश्य दिखाई पड़ता है, किन्तु मध्य भाग या शिखरपर प्रायः धवल शोभा ही व्याप्त रहती है।

  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    —Like a veil
    Which, if withdrawn, would but disclose the frown
    Of one who hates us, so the night was shown
    And grimly darkled o’er their faces pale
    And hopeless eyes.
    Don Juan.